|| सर्व विजयी हिन्दू पुत्र राष्ट्रधर्म आराधना ||

Introduction / परिचय

हिन्दू पुत्र संगठन

हिन्दूपुत्र का एक मात्र परिचय है हिन्दुस्तान के प्रत्येक हिन्दूओं को सुरक्षित हिन्दुस्तान बनाने के लिए प्रेरित करना।
हिन्दू पुत्र सोच का अस्तृत्व में आना
पाश्चात्य दर्शन का सनातन पर दुष्प्रभााव:
  1. जहाँ पूर्वजों की सेवा को सम्मान धर्म समझा जाता था। वहाँ पर वृ़द्धाश्रम की भरमार हो रही है।
  2. जहाँ की शिक्षा पद्धति में निम्नांकित विषयों में (बड़े-बुजुर्गों का आदर, संस्कार, स्नेह, स्वालंबन संतोष, सहिष्णुता, समर्पण, संघर्ष, संकल्प, सुविचार, शासन, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, परोपकार, सुरक्षा, सेहत, समर्पण, सहनशीलता, कर्मनिष्ठता, सत्य, शाश्वत, स्वतंत्रता, बोध, दान, पराक्रम, संस्कृति, दर्शन, ज्ञान, वैदिक शिक्षा) सामाजिक मूल्यों की जानकारी के साथ नैतिकता का बोध इस सभी क्षेत्रों की जानकारी पढ़ाई के द्वारा बच्चों को दी जाती थी। सबसे बड़ी खासियत की इसका कोई अतिरिक्त दबाव बच्चों पर नहीं होता था और ना ही गुरूजन या अभिभावक में कोई असहमति या कटुता का भाव उत्पन्न होता था। वही आज की मैकाले शिक्षा पद्धति में बच्चों पर जो भाड़ी दबाव है मेरे बच्चों में अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। जो चिंता का विषय है। आज के शिक्षा व्यवस्था में केवल और केवल धन अर्जन का आधिकारिक विषय है। आज के शिक्षा व्यवस्था में केवल और केवल धन अर्जन का आधिकारिक विषय ही शिक्षा का मापदंड बन चुका है। उसी सोच़ के साथ हमारे संस्कार बच्चों को पाश्चात्य दर्शन को शिक्षा के माध्यम से बड़ी ही चतुराई से हमारे बच्चों के बीच पड़ोसा जा रहा है। उन्हें समाजिक मूल्यों नौतिक वसूलों की जानकारी अपने पराकर्मी पूर्वजों अपनी संस्कृति से जुड़ी मुलभूत जानकारीयों से दूर रखा जा रहा है।
  3. जहाँ पर पोशाक, उम्र और वातावरण के हिसाब से धारण किए जाते थे। वहाँ पर अब ऐसी परिधानों का प्रचलन हुआ है जिसमें न अपनी शरीर को सही से ढ़क पाते और न ही सुरक्षा देती है। ना ही उम्र का एहसास कराती है। अब तो माँ का आँचल ही न रहा जिसमें बच्चे ममता का छाँव पा सकें।
  4. भारतीय खान-पान की वस्तुओं का जो पहले प्रतिकूल वातावरण में अनुकुलत प्रभाव देती थी। शरीर के सम्पूर्ण विकास का जो पोषक था। मन मस्तिष्क काम क्रोध पर जिससे सकारात्मक प्रभाव पड़ता था। आज सब कुछ उल्ट केवल हाईटेक को फास्ट फूड को जो लोग सेवन कर रहें हैं। भारत में मधुमेह रक्तचाप और अन्य बीमारियों की बाढ़ आ गयी है।
  5. अत्याधुनिक विदेशी मशिनिर, यूरिया खाद्य, विदेशी नशलें कि गायों का भारत में आने से लोगों का जीवन पर पड़ने वाले कुप्रभाव। पहले लोग हल बैल और कुदाल चलाते थें जैविक खाद और पशु धन की उन्नत देशी नशले थीं। जो दूध के साथ बैल और गोबर देती थी उससे लोग स्वस्थ और कर्मठ होते थें। उनकी उम्र ज्याद और शुद्ध पैदावार के साथ-साथ स्वास्थ भी सेहतमंद होता था। लोगों को रोजगार की कमी नहीं होती थी।
  6. टीवी के आने से विेदश्ी नग्नता अपराध का भारतीयों पर पड़ा प्रभाव:- पहले नाट्य मंचन शास्त्रीय संगीत देशी भाव नृत्य रामायण मंचन जागरण और कवि गोष्ठी हुआ करती थी। आज हाॅलीवुड फिल्मों और नग्नता दर्शन और काम भड़काने अपराध के नए नए तरीकों को लेकर फिल्मों की इंतजार होती है।
  7. यज्ञ, हवन, मंत्रोचार, यज्ञोपवित्र को लोग जहां अपनी उपस्थिति को उत्शुक रहते थे। लोग अब जाड़े के मौसम में ठंढ े प्रदेशों में लोग मदिरा पान करने को लोग अवसर की तलाश में रहते हैं। दोनों के अनुशासनों से लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों में आप अंतर सम झ सकते है।
  8. जहाँ पहले धर्म परोपकार को लोग मठ, मंदिर, धर्मशाला, गौशालाएँ बनवाते थे। आज पब, आर्केष्ट्रा, मधुशाला, वधशाला बनबाकर धन अर्जन कर समाज को अंधकार में धकेलने का काम कर रहे हैं।
  9. पाश्चात्य दर्शन के कारण हम आज अपने त्योहारों को भी उनके आधुनिकता से सम्मिश्रण कर अपनी शुद्धता को नष्ट कर रहे हैं। हम होली में रासायनिक रंगों ंका उपयोग कर चर्म रोगों को दावत देते हैं और देशी शुद्ध रंगों को भूलते जा रहे है। हमे दिवाली में बिजली का बल्व जला कर अपने धम का व्यय करते हैं जबकि हमारी परम्परा की पौराणिकता को देखें तो हम तिल, सरसों, घी के दीप जलाते थे। जिससे वातावरण शुद्ध होता था।