|| सर्व विजयी हिन्दू पुत्र राष्ट्रधर्म आराधना ||

31-08-2020

11 पाकिस्तानी हिंदू विस्थापितों की हत्या: Isi का हाथ, इस्लाम कबूल करवाने की साजिश या लोकल माफिया?

जोधपुर में अगस्त 9, 2020 को एक पाकिस्तानी विस्थापित हिन्दू परिवार के 11 लोगों की लाश खेत से मिलने के बाद सनसनी मच गई थी। विस्थापितों की मौत के मामले में अब बड़ा खुलासा हुआ है, जिसमें तीन बहादुर बहनों के संघर्ष की कहानी छिपी है। जहरीले रसायन के सेवन के बाद उनकी मौत हुई थी। विस्थापतों की सामूहिक आत्महत्या के पीछे की जो कहानी, वो काफी चौंकाने वाली है।जहाँ पाकिस्तान में हिन्दुओं की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है, वहीं अब जब वो भारत आकर शरण लेते हैं फिर भी उन्हें तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सिंधियानी तहरीक, सिंध फ्रीडम मूवमेंट सांगड़ इकाई की लक्ष्मी, प्रिया और सुमन की भी यही कहानी है, जो पाकिस्तान में हर अत्याचार को बर्दाश्त करते हुए लड़ती रहीं। उनके माता-पिता, भाई-भाभी और बच्चे, सब शरणार्थी बन कर भारत आ गए।वो तीन बहनें हैं। तीनों ने पूरे परिवार को भारत भेजने के बाद खुद भी इधर का रुख किया। परिवार को 5 साल का स्थाईवास मिला, जिसके बाद वो राजस्थान के जोधपुर में रहने लगे। लेकिन, एजेंटों और गारंटरों का जंजाल यहाँ उनका इन्तजार कर रहा था, ताकि अपने जाल में फँसा सके। नियम है कि किसी भारतीय को गारंटर बनाया जाता है लेकिन विजिटर वीजा पर आए परिवार ने मज़बूरी में स्थानीय विस्थापितों के ही एक नेता को गारंटर बनाया।फॉरेनर रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (fro) बिना गारंटर के स्थाईवास की अनुमति नहीं देता है। इसके बाद परिवार आँगणवा में विस्थापितों की एक बस्ती में रहने लगा। ‘दैनिक भास्कर’ में प्रकाशित एक एक्सक्लूसिव ख़बर के अनुसार, यहाँ का मुखिया उनकी दोनों भाभियों की तरह इन तीनों बहनों को भी काबू में करना चाहता था। भाभियाँ अपने पतियों के साथ नहीं रहती थीं, इसीलिए उन्हें घर लाने की कवायद शुरू की गई।तीनों जवान लड़कियों की गूँगे-बहरों के साथ जबरन शादी करा दी गई और उन्हें ऐसे ही रहने को मजबूर किया गया। वो लोग देचू के खेत में बस गए लेकिन वहाँ रहना गैर-क़ानूनी था और स्थाईवास जोधपुर का ही था। जून तक तीनों बहनों और उनके माता-पिता का वीजा भी ख़त्म हो गया। स्थाईवास के लिए फिर आवेदन दिया गया लेकिन गारंटर और मुखिया की नाराजगी के कारण स्थाईवास आगे नहीं बढ़ा।आखिरकार सिंध की आजादी के लिए लड़ने वाली तीनों बहनों ने परिवार के साथ ही जान दे दी क्योंकि शायद उनके पास और कोई चारा नहीं था और उन्होंने पाकिस्तान लौटने की बजाए मौत को गले लगाना बेहतर समझा। भाभियों से झगड़े के कारण पारिवारिक कलह भी बढ़ गया था। यहाँ रहने पर उन्हें शोषण का शिकार बनाया जाता। भाभियों द्वारा पुलिस केस किए जाने के कारण उन्हें यहाँ की नागरिकता भी नहीं मिलती।रिश्तेदार का कहना है कि केवलराम की पत्नी धांधीदेवी और रवि की पत्नी शरीफा यहाँ पहले आई थीं लेकिन जब केवलराम व रवि के वृद्ध माता-पिता और बच्चे यहाँ आ गए तो दोनों महिलाओं ने परिवार के साथ रहने से इनकार कर दिया। अंततः बच्चों की कस्टडी के लिए झगड़ा शुरू हो गया। दोनों की पत्नियाँ रिश्ते में मौसी-भांजी हैं। चेतन भील इस बस्ती का मुखिया है, जो 2012 में एक धार्मिक जत्थे के साथ यहाँ आया था।उसने ही परिवार को पनाह दी थी लेकिन तीनों बहनें यहाँ आ गईं तो फिर विवाद शुरू हो गया। गंगाराम और भागचंद एजेंट्स हैं, जो पाकिस्तान से आए हैं। भागचंद 2000 विस्थापितों को वीजा दिलाने का दावा करता है। सुनील भाटी स्थानीय नेता है, जो गारंटर बना था। चेतन के नाराज होने के बाद वो भी धमकियाँ दे रहा था। आरोप है कि पुलिस ने लक्ष्मी को गिरफ्तार कर के परिवार के साथ दुर्व्यवहार किया।जोधपुर में पाकिस्तान से आए 11 हिंदुओं की आत्महत्या सिस्टम के लिए शर्मनाक है। उनके एजेंट और गारंटर गुलामी करवा रहे थे,उनका वीजा समाप्त हो रहा था,उनके सामने 3 रास्ते थे- 1. वापस पाक चले जाएं 2. पूरी जिंदगी एजेंट-गारंटर की गुलामी करें 3. मृत्यु को चुनें।



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