28-07-2020
दिसंबर 17, 1992 के दिन, लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- “जहाँ मैंने आरंभ किया था, मैं वहीं समाप्त करना चाह रहा हूँ। मैंने कहा था कि देश तिराहे पर खड़ा है। एक तरह की सांप्रदायिकता को बढ़ावा देकर, एक तरह की कट्टरता को बढ़ावा देकर, आप दूसरी तरह की कट्टरता से नहीं लड़ें, मगर आप यही कर रहे हैं और अब इस समय आइए, हम एक नई शुरुआत करें। अयोध्या, जैसा मैंने शुरू में कहा था कि अवसर में बदला जा सकता है।”वाजपेयी करीब तीन दशक पहले जिस सांप्रदायिकता और कट्टरता को लेकर आगाह कर रहे थे, क्या वह जमशेद खान के यह कहने से, “हमने इस्लाम अपनाया और इस्लाम के अनुसार ही हम प्रार्थना करते हैं। लेकिन धर्म बदलने से हमारे पूर्वज नहीं बदल जाते। राम हमारे पूर्वज थे और हम अपने हिंदू भाइयों के साथ इसे मनाएँगे।”, खत्म हो गई है?या सईद अहमद के यह कहने से, “हम भारतीय मुस्लिम मानते हैं कि राम इमाम-ए-हिंद थे और मैं अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के दौरान मौजूद रहूँगा।”, से वह समय आ गया है जिसका जिक्र वाजपेयी कर रहे थे?या राशिद अंसारी जब कहते हैं, “अगर हमें गर्भगृह में जाने का मौका मिलता है, जहाँ शिलान्यास किया जाएगा, तो यह हमारे लिए आशीर्वाद की तरह होगा। अगर सुरक्षा वजहों से हमारा प्रवेश रोका जाता है तो हम बाहर से जश्न का हिस्सा बनेंगे।”, तो वह एक नई शुरुआत की बात कर रहे होते हैं? या फिर छत्तीसगढ़ से भूमि पूजन के लिए ईंट लेकर फैज खान की यात्रा को अवसर में बदला जा सकता है?सवाल कई हैं और ‘अच्छा हिंदू’ ‘रामभक्त मुसलमान’ पर लहालोट हुआ जा रहा है। 5 अगस्त को अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का भूमिपूजन होगा। देश के प्रधानमंत्री मौजूद होंगे। साधु-संत और भव्य राम मंदिर की संघर्ष यात्रा के कई पथिक भी उपस्थित रहेंगे। कितना आसान, कितना मधुर लगता है सब कुछ।लेकिन हिंदू के सवाल यहीं से खड़े होते हैं। क्या उत्तर प्रदेश और केंद्र में आज बीजेपी की सरकार न होती, तब भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह सब इतना ही आसान होता है? ‘अच्छा हिंदू’ कहेगा कि क्यों नहीं?लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कौन सी सरकार जाएगी। लेकिन हिंदू मन सवाल करता है कि शाहबानो के हक में भी फैसला इसी सुप्रीम कोर्ट ने दिया था, पर एक सरकार ही थी जो इसके खिलाफ अध्यादेश ले आई।
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